हिमाचल के धौलाधर कि वादियों में घटी इस प्रेम कि घटना का लोक कथाओं में अपना विशेष स्थान है | लोकमत के अनुसार यह कहानी 1870 के दशक कि है और इसी घटना पे आधारित बहुत सारे लोकगीत आज भी इस अमर प्रेम के साक्षी हैं |
इस लोककथा के मुख्य पात्र फुलमू और रांझू हैं | फुलमू एक गरीब गद्दी परिवार से सम्बन्ध रखती है और रांझू जमींदारों का बेटा है | दोनों एक दूसरे को प्रेम कर बैठते हैं लेकिन सामाजिक असमानता उनके मिलन में बाधा बनती है |
उस समय हिमाचल के एक दूरदराज़ के गांव के परिवेश कि कल्पना अगर कि जाए तो कुछ इस तरह का वातावरण रहा होगा:
पारंपरिक वेशभूषा में सजे स्त्री-पुरुष, चौपाल में बैठे बुज़ुर्ग, लोहार कि ठक-ठक, मिमियाते मेमने और हरी-भरी वादियों में भेडें चराते गद्दी | ऐसे ही एक गद्दी परिवार की बेटी है फुलमू | फुलमू मतलब जिसका मुख फूल जैसा हो, खूबसूरत और छैल-छबीली बाँकी-नार है | वहीँ दूसरी ओर रांझू भोला-भाला, मस्त रहने वाला शख्स है जो अपनी मीठी बातों से सबका मन मोह लेता है लेकिन उसकी बातों से भी मीठी है उसकी बांसुरी की तान जो धौलधारों के सन्नाटे के ऊपर भी हावी हो जाती है |
फुलमो हर शाम सहेलियों के साथ घाट पर पानी लेने जाया करती थी | वहीं एक दिन दोस्तों के साथ घूमते हुए रांझू की निगाह फुलमो पर पड़ी और दोनों मन ही मन एक दूसरे के हो बैठे | अक्सर रांझू पहाड़ों पे चढ़ कर बांसुरी बजाय करता था और उसकी बांसुरी की पुकार सुन मदहोश हुई फुलमू अपने घर में कोई बहाना बना कर रांझू के पास पहुँच जाया करती थी | इसी पे आधारित लोकगीत है :
कांगड़े दिया उचिया रिड़िया
बन्सरी बजी हो
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सदे हो
(काँगड़ा की ऊँची पहाड़ियों पे बांसुरी बज रही है
अपने पशुओं को चराता रांझू मुझे बुला रहा है )
चुक्या घडोलू गोरी पाणिया चली हो
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले लगी हो
(फुलमो ने घड़ा उठाया और पानी लेने चल पड़ी (रांझू से मिलने का बहाना)
बांसुरी कि तान सीधा उसके दिल मैं जो लग गई )
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
राख्या घडोलु गोरिया घरे जाई के
अम्मा जो गलांदी आयी कम कमाई के
(फुलमो ने वापिस घर जा के घड़ा रख दिया
और अपनी माँ को बोला कि कोई काम करके आती हूँ, वास्तव में उसे रांझू से मलने जो जाना है )
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
सजना ने मिली गोरी धारां जाई के
व्यहि करि लेई जा मिंजो घरे आयी के
(ऊँचे चरागाहों में जा के वो अपने साजन से मिली
और उससे कहा कि वो जल्द ही उसके घर आ के शादी करके ले जाए)
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
साँझा दिया गोरी छम-छम घरे आयी है
लेई जाणी रांझूऐं व्यहि करि के
(फुलमो शाम को ख़ुशी ख़ुशी घर वापिस आती है
रांझू उसे जल्द ही व्याह के जो ले जाने वाला है)
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले बजे हो
मीठी मीठी तान उद्दे दिल्ले लग्गे हो
(बांसुरी कि तान उसके दिल में लगी है
मीठी मीठी तान उसके दिल में लगी है)
दोनों को प्रेम आखिर समाज से कब तक छिपता | जब फुलमू के घर में इस बात का पता चला तो खूब पिटाई के बाद फुलमो को कमरे में बंद कर दिया गया | उधर रांझू भी अपने घर में कैद था | रांझू के पिता जी ने पुरोहित को बुलाया और जल्द से जल्द रांझू के लिए विवाह योग्य कन्या को ढूंढने का हुक्म सुनाया | जमींदार के बेटे का रिश्ता पास के गांव में तय हो गया |
शादी से एक दिन पूर्व जब विवाह की रस्में निभाई जा रहीं थीं तब फुलमो किसी तरह घर से निकल के रांझू के घर के बाहर से अंदर झांकती है और विवाह की तैयारियों में लगे लोगों और निभाई जा रही उबटन की रस्म को देखती है तो उसका दिल टूट जाता है | इसी पे आधारित लोक गीत है :
बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हथ बूटने दे लायाँ ओ फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(फुलमो तुम बाड़ कि आड़ से ऐसे क्यों झांक रही हो
झांक के हट क्यों जाती हो
आओ फुलमो मुझे हाथों पे हल्दी लगाओ
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
बुटना लुआन तेरी सकी चाचियाँ
तेरी सकी पाबीयाँ
जिनां दे मने विच चा ओ रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(तुम्हारी सगी चाची, सगी भाभी
तुम्हें हल्दी लगाएं
जिनके मन में तुम्हारी शादी का चाव है
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे बीतीं)
बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
मेरा व्याह लगया
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(फुलमो तुम बाड़ कि आड़ से ऐसे क्यों झांक रही हो
झांक के हट क्यों जाती हो
आओ फुलमो मुझे मेहँदी लगाओ
मेरी शादी जो हो रही है
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
कुन्नि बो बामणे तेरा व्याह पढ़या
रांझू ब्याह लिख्या
कुन्नि बो किती कडमाई हो रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(किस ब्राह्मण ने तुम्हारा व्याह पढ़ा
रांझू किसने तम्हारी शादी लिखी
किसने लड़की कि तलाश कि
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे बीतीं)
कुलें दे पुरोते मेरा व्याह पढ़या
फुलमो व्याह लिख्या
बापूएँ किती कड़माई फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कुल के पुरोहित ने मेरा व्याह पड़ा
उसी ने लिखा
मेरे पिताजी ने लड़की कि तलाश की
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
जिनि बो बामने तेरा व्याह दिख्या
रांझू व्याह लिख्या
उसे दी ना पोए कदी पूरी रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(जिस ब्राह्मण ने तुम्हारा व्याह देखा
रांझू जिसने भी लिखा
उसकी गती नहीं हो सकती
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे बीतीं)
रांझू को शादी करते देख उदास हुई फुलमू जंगल में जा कर जहरीली जड़ी-बूटी खा लेती है और अपने प्राण त्याग देती है | अगले दिन फुलमो की मौत से अनजान रांझू पालकी में दूल्हा बना बैठा बारात लेके दूसरे गांव के लिए चल पड़ता है |रास्ते में जब वह पालकी से पहाड़ की दूसरी ओर देखता है तो उसको किसी की लाश ले जाते लोग दिखते हैं | वह कहारों, बारातियों से पूछता है यह किसकी अर्थी जा रही है तब उसे सारी बात पता चल जाती है कि उसके वियोग में फुलमो ने अपने प्राण त्याग दिए हैं | वो कहारों से पालकी रखने को बोलता है, बारातियों से वो फुलमो कि चिता में लकड़ी डालने के बाद बारात ले जाने का आग्रह कर, अपने सिर से सेहरा उतार के फेंक देता है और दरिया पार करके फुलमो कि चिता के पास पहुँच जाता है | वो बाएं हाथ में मुखाग्नि लिए और दाहिने हाथ से फुलमो कि चिता पे लकड़ी रखता है |
उआरें-उआरें रांझूऐ दी जंज जाए
ओ लोको जानी जाए
पारें-पारें फुलमो दी लोथ लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(इक तरफ रांझू की बारात जा रही है
दूसरी तरफ फुलमो की शव यात्रा
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
रक्खा वो कहारो मेरी पलकिया
ओ मेरी पलकिया
फुलमो जो लकड़ी मैं पाणी लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कहारो मेरी पालकी रख दो
मुझे फुलमो की चिता में लकड़ी डालनी है
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
बाएं हाथी रनझुए ने लकड़ी पाई
लोको लकड़ी पाई
दाएं हाथी फुलमो जो लाया लम्बुआ
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(बहिने हाथ से रांझू ने लकड़ी डाली
दाहिने हाथ से उसने चिता को मुखाग्नि दी
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
प्रीत नी लाणी लोको कच्च्यां कन्ने
हो लोको कुँवारेयां कन्ने
व्याह करी हूंदे बेईमान लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कच्चे लोगों के साथ प्रीत मत लगाना
कुंवारों के साथ मत लगाना
व्याह करके ये बईमान हो जाते हैं
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
चिता को अग्नि देने के बाद जब आग पूरी तरह प्रचण्ड हो जाती है तो रांझू फुलमो कि जलती हुई चिता में कूद जाता है और अमर हो जाता है उनका प्यार जो इतिहास के पन्नो में आज भी सुनहरी अक्षरों में लिखा गया है उसी चिता कि भभकती आग की तरह जिसमें न जाने कितने प्रेमी जल कर अमर हो गए.................