Tuesday, 18 October 2016

हूँण वो कताईं जो नसदा धुड़ुआ (पहाड़ी)

हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
रिड़िया तां रिड़िया धुड़ू भला नसदा
नाले तां खोले गौरा तोपदी
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

कच्ची ओ कुवारी बाबुल दे घरें
अज बो ब्याहियाँ कजो भला छोड़दा
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

गौरा तां गौरा हकां बो लाईआं
गौरा तां हकां न ओ सुणदी
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

मंदरिया चाली चल मेरे धुड़ूआ
नाजुक़ पैरां छाले होई आये
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

छन्द-छन्द धुड़ुआ भाली हो लेंआं
नाज़ुक़ लतां न ओ चलदीं
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

हो रिड़िया तां रिड़िया कजो भला हण्डदी
बिच शमशानां डेरा हो मेरा
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

ओ उच्याँ कैलाशां डेरा हो मेरा
तू लड़ मेरा छड़ी हो दियां
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

मड़िया रा कूड़ा मड़िया सुटणा
नाते दी धीया नाते जो देणी
हूँण वो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे बो लाई

हो असां भला हूँदे मड़ियाँ दे जोगी
तू भला हूँदी राजे दी बेटी
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

गल मेरे गौरा सर्पां दी माला
भूतां दे संग डेरा हो मेरा
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

हो उच्याँ कैलाशां शिव मेरा बसदा
कुण बो गलांनदा गौरा नी बसदी
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई...................

पाई लोकगीत जगह कन्ने टेमे दे साबे ने बदलदे रहन्दे न | मैं जियाँ सुण्या तियाँ लिखिता | जे कोई भूल-चुक होंगी तां माफ़ करनयो कन्ने दसी भी दीन्यो की गलती कुथु है | पाई लोकगीत तान साढ़े सारयां दे न, कन्ने हूँण ए साड़ी ही जिम्मेवारी बणदी है कि इस धरोहरा जो समाली करि राखिये |   

Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa

This folksong is based on dialogue between Mata Parvati and Shiva. When Shiva came to marry her, to the kingdom of her father King Kailash then due to Ghostly appearance of Shiva her mother refuses to marry her daughter with Shiva. Shiva considering this as his disrespect starts to go back to his residence at Kailash Mountain but Mata Parvati also followed him and the dialogue between them goes on like this :

Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai
(Goddess Parvati ji is saying to Shiv ji that
Now where are you running Bholenath
My father has engaged me to you )

Ridiya tan Ridiya Dhudu bhla nasda
Nale tan khole Gaura Topdi
(Bholenath is running on upper hills while
Gaura(Parvati ji) is searching him in lower areas of rivers and brooks)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Kachchi O kuwari babul de gharein
Aj bo vyahiyan kajo bhla chod da
(I was well, unmarried in my Father's house
Now why are you leaving me after promising marriage)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Gaura tan Gaura hakan bo laiyan
Gaura di hak na o sundi
(Parvati ji called Bholenath several times
But he didn't listened to her for once )
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Mandariya chaali chal mere Dhudua
Najuk pairan chale hoi aaye
(Parvati ji asking Bholenath to slowdown
As she is tired of following him)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Channd-channd Dhudua bhali ho leyan
Najuk latan na bo chaldi
(Please-o-please Bholenath lets sit down
my leg have given up I can't walk anymore)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Ho ridiya tan ridiya kajo bhla hand-di
Bich shamshana dera ho mera
(Why are you searching me on hills
I reside in center of cremation ground )
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

O unchyan Kailashan dera ho mera
tu lad mera chaddi ho deyan
(I reside on the Highest Kailashs(Mountains)
You should leave me for your well being )
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Madiyan ra kuda madiyan sutna
Nate di dhee nate jo deni
(I belong to cremation ground, I will reside here
You belong to your King father, I will return you to him )
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Ho asaan bhla hunde madiyan de jogi
Tu bhla hundi Raje di beti
(We are ascetics of cremation ground
You are Daughter of a King
How can we be one )

Gal mere Gaura sarpan di mala
Bhutan de sang Dera ho mera
(I wear necklace of snakes
Ghosts are my friends)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai

Ho unchyan Kailashan Shiv mera bas-da
Kun bo galan-da Gaura ni basdi
(At the Highest Kailashs(mountains) my Shiva resides and
Who says Mata Parvati doesn't reside there)
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai
Hun bo kataein jo nasda Dhuduaa
Bapuein lad tere o laai
Bapuein lad tere o laai
Bapuein lad tere o laai
Bapuein lad tere o laai
Bapuein lad tere o laai  

Suggestions regarding corrections are most welcome as these Folksongs do change from place to place and time to time. This is our heritage and we should try our best to preserve it.

हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ (हिंदी)

यह लोकगीत शिव-पार्वती जी के विवाह के समय घटी उस घटना पर आधारित है कि जब भोलेनाथ बारात के साथ पार्वती जी को व्याहने राजा कैलाश के महल में आते हैं तो पार्वती जी कि माँ भोलेनाथ के रूप को देख कर डर जाती हैं और अपनी बेटी उनके साथ व्याहने को मना कर देती है | इसे अपना अपमान समझ कर जब भोलेनाथ वापिस कैलाश पर्वत कि ओर जाने लगते हैं तो पार्वती जी उनके पीछे चलने लगती हैं और उन दोनों के मध्य कुछ इस प्रकार का संवाद होता है : 

हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
(पार्वती जी : हे भोलेनाथ अब कहाँ जा रहे हो
मेरे पिताजी ने मेरा विवाह आपके साथ तय कर दिया है )

रिड़िया तां रिड़िया धुड़ू भला नसदा
नाले तां खोले गौरा तोपदी
(भोलेनाथ ऊपर पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं
नीचे नदी-नालों और गहरी खाईयों में पार्वती माँ (गौरा) उनको ढूंढ रहीं हैं )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

कच्ची ओ कुवारी बाबुल दे घरें
अज बो ब्याहियाँ कजो भला छोड़दा
(पार्वती जी भोलेनाथ जी को कह रहीं हैं कि मैं अपने मायके में कुंवारी थी
अब तुम मुझसे विवाह का वादा करके भला क्यों छोड़ रहे हो )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

गौरा तां गौरा हकां बो लाईआं
गौरा दी हक़ न ओ सुणदी
(पार्वती जी ने भोलेनाथ को कई बार आवाज़ लगाई
लेकिन उनकी एक भी पुकार भोलेनाथ तक नहीं पहुंची)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

मंदरिया चाली चल मेरे धुड़ूआ
नाजुक़ पैरां छाले हो आये
(हे भोलेनाथ थोड़ा धीरे चलो
मेरे नाज़ुक पैरों में छाले पड़ गए हैं)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

छन्द-छन्द धुड़ुआ बाली हो लेंआं
नाज़ुक़ लतां न ओ चलदीं
(हे भोलेनाथ थोड़ी देर बैठ जाओ
मेरी नाज़ुक़ टाँगें अब नहीं चल रहीं हैं)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

हो रिड़िया तां रिड़िया कजो भला हण्डदी
बिच शमशानां डेरा हो मेरा
(हे पार्वती तुम मुझे पहाड़ों में क्यों ढूँढ रही हो
शमशान के बीचों-बीच मेरा डेरा हैं )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

ओ उच्याँ कैलाशां डेरा हो मेरा
तू लड़ मेरा छड़ी हो दियां
(हे पार्वती मैं ऊँचे कैलाशों में रहता हूँ
तुमसे यहाँ नहीं रहा जाएगा तुम मुझे छोड़ दो तो बेहतर है)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

मड़िया रा कूड़ा मड़िया सुटणा
नाते दी धीया नाते जो देणी
(हम शमशान में रहने वाले शमशान में ही रहेंगे
तुम्हें मैं तुम्हारे पिताजी को वापिस सौंप दूंगा)
हूँण वो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे बो लाई

हो असां भला हूँदे मड़ियाँ दे जोगी
तू भला हूँदी राजे दी बेटी
(हम शमशान में रहने वाले जोगी हैं
और तुम ठहरी राजा कि बेटी
अपनी नहीं निभेगी )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

गल मेरे गौरा सर्पां दी माला
भूतां दे संग डेरा हो मेरा
(हे पार्वती मेरे गले में सांपों कि माला है
और भूत-प्रेतों के साथ मेरा उठना बैठना है )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई

हो उच्याँ कैलाशां शिव मेरा बसदा
कुण बो गलांनदा गौरा न बसदी
(ऊँचे कैलाशों मेरा मेरे भोलेनाथ निवास करते हैं
और कौन कहता है वहां पार्वती माँ का निवास नहीं है )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई...................

अगर आपको इस लोकगीत में कोई भी गलती नज़र आये तो उजागर जरूर करें | लोकगीत समय और जगह के हिसाब से ढल जाते हैं और एक ही शब्द के कई मायने निकल आते हैं | खैर अब यह हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम अपनी इस धरोहर को इसके सही अर्थ के साथ संजो कर रखें और आप सभी इसमें अपना योगदान दें..............   

Friday, 7 October 2016

Fulmoo and Ranjhu (Himalayan folk lovestory )

This folktale of Dhauladhar region of Himalaya has earned a special place specially in Chamba and Kangra valleys. The story is based on love between Fulmoo (female) and Ranjhu(male) who tried to alter the social structure of society of that time which dates back to 1870s. Their love was considered illicit and in the end they both have to give up their lives to be one for time eternal.
The two main characters of this folktale i.e Fulmoo and Ranjhu; Fulmoo belongs to a poor Gaddi family and Ranjhu is younger son of rich Jamindaar of that area. The story of their love is beautifully preserved in folk songs.
Lets take you back to an era in Himachal
when early mornings were welcomed by birds,
when all dressed up in traditional attire,
when Gaddis roamed freely as per their desire
Being shepherds they guide their sheeps' herd
Fulmoo (one who has face like a flower) is daughter of such a Gaddi family and is a Himalayan beauty while Ranjhu is joyful and heedless but a renowned flute player. The sound of whose flute can pierce the silences of Dhauladhars.
Every day Fulmoo accompanied by village girls went to fetch water from Ghat (place where whole village fetches water which is generally a well or a natural stream). On one such occasion Ranjhu was also roaming around ghat along with his friends when his eyes went mesmerised by the beauty of Fulmoo and they both fell in love. Love at first sight, Yes it was..........
Ranjhu used to play flute while sitting in deepest corners of jungle and Fulmoo who was intoxicated by sound of flute always find an excuse to go and meet her Lover.
the folk song goes on :
kangde diya uchiya ridiya bansari baje hoo
dangreyan jo charda Ranjhu minjo sadde hoo..........
(Ranjhu is playing flute in high hills of Kangra valley
while guiding his cattles he is calling me, he is calling me (Fulmoo)
chukya ghdolu gori paniye chali hoo
bansariya di taan ude dille laggi hoo
(intoxicated by the lovely music of flute Fulmoo picked up a vessel and went to fetch water so that she can meet her lover Ranjhu)
kangde diya uchiya ridiya bansari baje hoo
dangreyan jo charda Ranjhu minjo sadde hoo....
rakhya ghdolu goriya ghare jayi ke jayi ke
amma jo galandi aayi kam kamai ke
(when she returned after fetching water she said to her mother that she will return after finishing certain work. In her heart she has only one desire to meet Ranjhu)
kangde diya uchiya ridiya bansari baje hoo
dangreyan jo charda Ranjhu minjo sadde hoo....
sajna ne mili gori dharan jayi ke
vyahi kari ke leyi ja minjo ghare aayi ke....
(She met her lover in high meadows and she told him to take her with him after marrying her )
kangde diya uchiya ridiya bansari baje hoo
dangreyan jo charda Ranjhu minjo sadde hoo....
sanjha deyiya gori cham-cham ghare aayi e...
leyi jani ranjhue vyahi kari ke
(happily, she returned in the evening. Ranjhu will take her with him after marrying her)
kangde diya uchiya ridiya bansari baje hoo
dangreyan jo charda Ranjhu minjo sadde hoo....
bansariya di taan ude dile bajje ho
(She is mesmerised with tone of flute)
mithi mithi taan udde dile lagge ho
(She is intoxiated by the sweet tone of flute )
It is said that you cant hide Love for long time. Soon people got to know about love of Fulmoo and Ranjhu. After scolding her badly Fulmoo was locked in a room and Ranjhu was also jailed in his own home.
Ranjhu's father, The Jamindaar soon sent for the Pandit(Priest) and Pandit hastily arranged for marriage of Ranjhu in a socially equal family in next village.
One day Fulmoo escaped from her home and when she reached near the house of Ranjhu; She peeped through the boundary wall which was made up of thorny bushes. The ground below her feet slipped as she saw the proceedings of Ranjhu's Marriage going on. She stood there for some time and Ranjhu, to whom the custom of Butna (Haldi/mustard paste) was being performed, saw her peeping and the folk song based on conversation between their eyes goes on:
Baduein Sughaduein tu kiyan jhankdi
Jhanka kajo maardi
Do hath Butne de layan o Fulmoo
Galan hoiyan beetiyaan
Galan hoiyan beetiyaan
(Ranjhu: Why are you peeping through Bushes
Why are you taking a glimpse
Come and apply mustard paste O Fulmoo
These things have happened
These things have happened......)
Butna luan teri saki pabiyan
Teri saki chachiyan
Jina de mane vich cha o Ranjhu
Galan kiyan bitiyan
Galan kiyan bitiyan
(Fulmoo: your kins will apply the mustard paste
who are fulfilling their hearts desire about your marriage Ranjhu
How things happened
How things happened O Ranjhu)
Baduein Sughaduein tu kiyan jhankdi
Jhanka kajo maardi
Do hath mehndiya de layan o Fulmoo
Mera vyah lagya
Galan hoiyan beetiyaan
Galan hoiyan beetiyaan
(Ranjhu: Why are you peeping through Bushes
Why are you taking a glimpse
Come and apply mehndi O Fulmoo
Its my marriage goin on
These things have happened
These things have happened......)
Kunni bo bamne tera vyah padya
Ho vyah likhya
Kunni bo kiti kadmayi ranjhu
Galan kiyan beetiyan
Galan kiyan beetiyan
(Fulmoo: which priest fixed your marriage
who fixed terms and conditions
who was middle man
How things happened
How things happened O Ranjhu )
kulle de purote mera vyah padya
Fulmo vyah likhya
Bapuein kiti kadmai Fulmo
Galan hoi beetiyan
Galan hoi beetiyan
( Our family priest fixed the marriage
He fixed all terms and conditions
My father was the middle man O Fulmo
These things have happened
These things have happened )
Jini bo bamne tera vyah dikhya
Ranjhu vyah likhya
Use di na poe kadi puri Ranjhu
Galan kiyan beetiyan
Galan kiyan beetiyan
(The priest who arranged your marriage
Ranjhu who fixed your marriage
will never attain liberation
How things happened
How things happened.......)
Feeling heart broken Fulmoo ran away to forest and ate a poisonous herb and to the unbearable pain of separation, she gave up her life.
Next day when Ranjhu as a Groom was being carried in a palanquin along with family, friends and villagers (Barat) to the next village for the marriage; He saw people carrying a deadbody on the other side of hill. When he enquired about the deceased he came to know about the Fulmoo. He ordered palanquin bearers to lay down palaqi and told his kins that he will do marriage only after he cremate the dead body of Fulmoo.
Uaare uaare Ranjhue di Janj Jae
O loko jani jae
Parein parein fulmo di loth loko
Galan hoi beetiyan
Galan hoi beetiyan
(At one side of hill the Kins of Ranjhu are going with him to the Girls' place for the marriage
On other side kins of Fulmoo are carrying her dead body for cremation
These things have happened
These things have happened )
Rakha o kaharo meri palkiya
O meri palkiya
Fulmo jo lakdi main pani loko
Galan hoiyan beetiyan
Galan hoiyan beetiyan
(o palanquin Bearers lay down my palaqui
I want to do cremation proceedings of Fulmoo
These things have happened
These things have happened )
Bayein hathe Fulmoo jo lakdi payi
O loko lakdi payi
Dayein hathein Fulmoo jo laya lambua
Galan hoi beetiyan
Galan hoi beetiyan
(By left hand Ranjhu placed wood over Fulmoo
By right hand he set her (dead body) on Fire
These things have happened
These things have happened )
Preet ni lani loko kachchyan kanne
O loko kuwarean kanne
Vyah kari hunde beimaan loko
Galan hoi beetiyan
Galan hoi beetiyan
( Never fell in love with infirm people
they will marry someone else
These things have happened
These things have happened )
He crossed the river and went to other side where the body of Fulmoo was laying on pile of wood (chita). With Left hand he placed wood over her and in the right he holds a lightened piece of wood for cremation . He cremated his love and when the ardent fire was flickering Ranjhu jumped in the burning pile of wood, which makes their Love immortal and which is still sung in Folk songs of Himachal.
To those who love beyond the boundaries of life and death.................

  

फुलमू रांझू ( हिमाचल की प्रेम आधारित लोक कथा )


हिमाचल के धौलाधर कि वादियों में घटी इस प्रेम कि घटना का लोक कथाओं में अपना विशेष स्थान है | लोकमत के अनुसार यह कहानी 1870 के दशक कि है और इसी घटना पे आधारित बहुत सारे लोकगीत आज भी इस अमर प्रेम के साक्षी हैं |
इस लोककथा के मुख्य पात्र फुलमू और रांझू हैं | फुलमू एक गरीब गद्दी परिवार से सम्बन्ध रखती है और रांझू जमींदारों का बेटा है | दोनों एक दूसरे को प्रेम कर बैठते हैं लेकिन सामाजिक असमानता उनके मिलन में बाधा बनती है |
उस समय हिमाचल के एक दूरदराज़ के गांव के परिवेश कि कल्पना अगर कि जाए तो कुछ इस तरह का वातावरण रहा होगा:
पारंपरिक वेशभूषा में सजे स्त्री-पुरुष, चौपाल में बैठे बुज़ुर्ग, लोहार कि ठक-ठक, मिमियाते मेमने और हरी-भरी वादियों में भेडें चराते गद्दी | ऐसे ही एक गद्दी परिवार की बेटी है फुलमू | फुलमू मतलब जिसका मुख फूल जैसा हो, खूबसूरत और छैल-छबीली बाँकी-नार है | वहीँ दूसरी ओर रांझू भोला-भाला, मस्त रहने वाला शख्स है जो अपनी मीठी बातों से सबका मन मोह लेता है लेकिन उसकी बातों से भी मीठी है उसकी बांसुरी की तान जो धौलधारों के सन्नाटे के ऊपर भी हावी हो जाती है |
फुलमो हर शाम सहेलियों के साथ घाट पर पानी लेने जाया करती थी | वहीं एक दिन दोस्तों के साथ घूमते हुए रांझू की निगाह फुलमो पर पड़ी और दोनों मन ही मन एक दूसरे के हो बैठे | अक्सर रांझू पहाड़ों पे चढ़ कर बांसुरी बजाय करता था और उसकी बांसुरी की पुकार सुन मदहोश हुई फुलमू  अपने घर में कोई बहाना बना कर रांझू के पास पहुँच जाया करती थी | इसी पे आधारित लोकगीत है :
कांगड़े  दिया उचिया रिड़िया
बन्सरी बजी हो
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सदे हो
(काँगड़ा की ऊँची पहाड़ियों पे बांसुरी बज रही है
अपने पशुओं को चराता रांझू मुझे बुला रहा है )
चुक्या घडोलू गोरी पाणिया चली हो
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले लगी हो
(फुलमो ने घड़ा उठाया और पानी लेने चल पड़ी (रांझू से मिलने का बहाना)
बांसुरी कि तान सीधा उसके दिल मैं जो लग गई )
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
राख्या घडोलु गोरिया घरे जाई के
अम्मा जो गलांदी आयी कम कमाई के
(फुलमो ने वापिस घर जा के घड़ा रख दिया
और अपनी माँ को बोला कि कोई काम करके आती हूँ, वास्तव में उसे  रांझू से मलने जो जाना है )
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
सजना ने मिली गोरी धारां जाई के
व्यहि करि लेई जा मिंजो घरे आयी के
(ऊँचे चरागाहों में जा के वो अपने साजन से मिली
और उससे कहा कि वो जल्द ही उसके घर आ के  शादी करके ले जाए)
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
साँझा दिया गोरी छम-छम  घरे आयी है
लेई जाणी रांझूऐं व्यहि करि के
(फुलमो शाम को ख़ुशी ख़ुशी घर वापिस आती है
रांझू उसे जल्द ही व्याह के जो ले जाने वाला है)
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले बजे हो
मीठी मीठी तान उद्दे दिल्ले लग्गे हो
(बांसुरी कि तान उसके दिल में लगी है
मीठी मीठी तान उसके दिल में लगी है)
दोनों को प्रेम आखिर समाज से कब तक छिपता | जब फुलमू के घर में इस बात का पता चला तो खूब पिटाई के बाद फुलमो को कमरे में बंद कर दिया गया | उधर रांझू भी अपने घर में कैद था | रांझू के पिता जी ने पुरोहित को बुलाया और जल्द से जल्द रांझू के लिए विवाह योग्य कन्या को ढूंढने का हुक्म सुनाया | जमींदार के बेटे का रिश्ता पास के गांव में तय हो गया |
शादी से एक दिन पूर्व जब विवाह की रस्में निभाई जा रहीं थीं तब फुलमो किसी तरह घर से निकल के रांझू के घर के बाहर से अंदर झांकती है और विवाह की तैयारियों में लगे लोगों और निभाई जा रही उबटन की रस्म को देखती है तो उसका दिल टूट जाता है | इसी पे आधारित लोक गीत है :

बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हथ बूटने दे लायाँ ओ फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(फुलमो तुम बाड़ कि आड़ से ऐसे क्यों झांक रही हो
झांक के हट क्यों जाती हो
आओ फुलमो मुझे हाथों पे हल्दी लगाओ
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
बुटना लुआन तेरी सकी चाचियाँ
तेरी सकी पाबीयाँ
जिनां दे मने विच चा ओ रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(तुम्हारी सगी चाची, सगी भाभी
तुम्हें हल्दी लगाएं
जिनके मन में तुम्हारी शादी का चाव है
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे  बीतीं)
बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
मेरा व्याह लगया
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(फुलमो तुम बाड़ कि आड़ से ऐसे क्यों झांक रही हो
झांक के हट क्यों जाती हो
आओ फुलमो मुझे मेहँदी लगाओ
मेरी शादी जो हो रही है
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
कुन्नि बो बामणे तेरा व्याह पढ़या
रांझू ब्याह लिख्या
कुन्नि बो किती कडमाई हो रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(किस ब्राह्मण ने तुम्हारा व्याह पढ़ा
रांझू किसने तम्हारी शादी लिखी
किसने लड़की कि तलाश कि
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे  बीतीं)
कुलें दे पुरोते मेरा व्याह पढ़या
फुलमो व्याह लिख्या
बापूएँ किती कड़माई फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कुल के पुरोहित ने मेरा व्याह पड़ा
उसी ने लिखा
मेरे पिताजी ने लड़की कि तलाश की
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
जिनि बो बामने तेरा व्याह दिख्या
रांझू व्याह लिख्या
उसे दी ना पोए कदी पूरी रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
(जिस ब्राह्मण ने तुम्हारा व्याह देखा
रांझू जिसने भी लिखा
उसकी गती नहीं हो सकती
ये बातें कैसे बीतीं
ये बातें कैसे  बीतीं)

रांझू को शादी करते देख उदास हुई फुलमू जंगल में जा कर जहरीली जड़ी-बूटी खा लेती है और अपने प्राण त्याग देती है | अगले दिन फुलमो की मौत से अनजान रांझू पालकी में दूल्हा बना बैठा बारात लेके दूसरे गांव के लिए चल पड़ता है |रास्ते में जब वह पालकी से पहाड़ की दूसरी ओर देखता है तो उसको किसी की लाश ले जाते लोग दिखते हैं | वह कहारों, बारातियों से पूछता है यह किसकी अर्थी जा रही है तब उसे सारी बात पता चल जाती है कि उसके वियोग में फुलमो ने अपने प्राण त्याग दिए हैं | वो कहारों से पालकी रखने को बोलता है, बारातियों से वो फुलमो कि चिता में लकड़ी डालने के बाद बारात ले जाने का आग्रह कर, अपने सिर से सेहरा उतार के फेंक देता है और दरिया पार करके फुलमो कि चिता के पास पहुँच जाता है | वो बाएं हाथ में मुखाग्नि लिए और दाहिने हाथ से फुलमो कि चिता पे लकड़ी रखता है |

उआरें-उआरें रांझूऐ दी जंज जाए
ओ लोको जानी जाए
पारें-पारें फुलमो दी लोथ लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(इक तरफ रांझू की बारात जा रही है
दूसरी तरफ फुलमो की शव यात्रा
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
रक्खा वो कहारो मेरी पलकिया
ओ मेरी पलकिया
फुलमो जो लकड़ी मैं पाणी लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कहारो मेरी पालकी रख दो
मुझे फुलमो की चिता में लकड़ी डालनी है
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
बाएं हाथी रनझुए ने लकड़ी पाई
लोको लकड़ी पाई
दाएं हाथी फुलमो जो लाया लम्बुआ
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(बहिने हाथ से रांझू ने लकड़ी डाली
दाहिने हाथ से उसने चिता को मुखाग्नि दी
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )
प्रीत नी लाणी लोको कच्च्यां कन्ने
हो लोको कुँवारेयां कन्ने
व्याह करी हूंदे बेईमान लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
(कच्चे लोगों के साथ प्रीत मत लगाना
कुंवारों के साथ मत लगाना
व्याह करके ये बईमान हो जाते हैं
ये बातें बीत चुकी हैं
ये बातें बीत चुकी हैं )

चिता को अग्नि देने के बाद जब आग पूरी तरह प्रचण्ड हो जाती है तो रांझू फुलमो कि जलती हुई चिता में कूद जाता है और अमर हो जाता है उनका प्यार जो इतिहास के पन्नो में आज भी सुनहरी अक्षरों में लिखा गया है उसी चिता कि भभकती आग की तरह जिसमें न जाने कितने प्रेमी जल कर अमर हो गए.................    
               
  

रांझू-फुलमूऐ दी काणी ( पहाड़ी च )

साड़ी पहाड़िया च लोककथां दा अपना दर्ज़ा है | बच्चे की जालू तकर दादी-नानिया ते कहानियां ना सुनणे की मिलन तालु तकर से माणु नई बणदा | अजकले दे माँ-पेओ अपने नयाण्याँ की अंग्रेजी-हिंदी स्खाला दे कन्ने बेचारी पहाड़िया की कोई पूछा-मंगा दा ही नई | खैर अज तुसांजो रांझू-फुलमू दी प्रेम कहानी सुनाने हां |
पाई गल बड़ी पुराणी है कोई 1870 दे नेड़े-तेडे दी | तालु जमींदारां दा राज चलदा था | सै राजे की टके (कर) किठे करि के दिंदे थे | अदेहे ही इक जमींदारे दा लौका मुण्डु था रांझू | सारा दिन फिरदा रेह्न्दा था पर अप्णियाँ मिठियां गलां कन्ने सारयाँ दा दिल मोहि लेंदा था | गलांदे न की रांझू बंसरी बड़ी छैल बजांदा था कि तिसदि बँसरिया दी तान सुनी करि कोई भी मदहोश होइ जाए | दुए पासे फुलमो थी गद्दन, छैल-छबीली पहाड़ी बांकीनार | जिसादा ना ही फुलमो था से कितनी सोणी होंगी !
फुलमो रोज अप्णियाँ सहेलियां कन्ने घाटे पर पानी भरना जांदी थी | इक दिन रांझू भी अपने मितरां कन्ने घाटे दे नेड़े फिरा दा था कि तिसदि नज़र फुलमो पर पई गई | नज़रां मिलदे ही दोनों इक दुए कि दिल देई बैठे जियां कोई पिछले जन्मे दे बिछड़े दे होण |
रांझू अक्सर पाड़े पर चढ़ि करी बंसरी बजांदा था | तिसदि बँसरिया दी तान सुनी करी पागल होइ फुलमो घरे कोई न कोई बाना लायी करी के तिस आल पूजी जांदी थी |
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
चुक्या घडोलू गोरी पाणिया चली हो
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले लगी हो
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
रख्या घडोलु गोरिया घरे जाई के
अम्मा जो गलांदी आयी कम कमाई के
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
सजना ने मिली गोरी धारां जाई के
व्यहि करि लेई जा मिंजो घरे आयी के
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
साँझा दिया गोरी छम-छम  घरे आयी है
लेई जाणी रांझूऐं व्यहि करि के
काँगड़े दिया उचिया रिड़िया बंसरी बजे हो........
डंगरयां जो चारदा रांझू मिंजो सद्दे हो.......
बँसरिया दी तान उद्दे दिल्ले बजे हो
मीठी मीठी तान उद्दे दिल्ले लग्गे हो............
रांझू-फुलमो दे प्यारे दी ख़बर जालू तीना  दे घरे तकर पूजी तालु तीना दोनों दी तां शामत आयी गई | दोनों अपने घरे च ही कैद होइ गए |
रांझूऐ  दे पेयोएं अपने पंडते जो सद्दी करि गलाया कि छोड़ी-छोड़ी साड़िया बिरादरिया दी कोई कुड़ी तोप, असां अपना छोकरु व्याही लेना | पंडत कन्ने दे ग्राएं दिए इक कुड़िया दा रिश्ता लेइ आया | हफ्ते अंदर व्याह भी रखी दित्ता |
इक दिन फुलमो घरे ते नसी करी रांझूऐ दे घरे वाल चली जांदी | जालू से रांझूऐ दे घरे दे आलेदवाले दी बाड़ी च झांकी करी दिखदि है तालु तीसा कि पता लगदा है कि रांझूऐ दा तां व्याह लगया होणा | रांझूऐ कि तां लोक बुटणा मला दे |
बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हथ बूटने दे लायाँ ओ फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
बुटना लुआन तेरी सकी चाचियाँ
तेरी सकी पाबीयाँ
जिनां दे मने विच चा ओ रांझू
गलां कियां बीतियाँ
बड़ुए सुगाड़ूएं तू कजो झांकदी
झाँका कजो मारदी
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
दो हाथ मेहन्दिया दे लायां फुलमो
मेरा व्याह लगया
गलां होइयां बीतियाँ
कुन्नि बो बामणे तेरा व्याह पढ़या
रांझू ब्याह लिख्या
कुन्नि बो किती कडमाई हो रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
कुलें दे पुरोते मेरा व्याह पढ़या
फुलमो व्याह लिख्या
बापूएँ किती कड़माई फुलमो
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
जिनि बो बामने तेरा व्याह दिख्या
रांझू व्याह लिख्या
उसे दी ना पोए कदी पूरी रांझू
गलां कियां बीतियाँ
गलां कियां बीतियाँ
रांझूऐ दे व्याहे दियाँ रसमाँ निबदियां दिखी करी तीसा दा तां दिल टूटी जांदा है | से नठी करी बणे च जाइ के ज़हरीली जड़ी खाई लेंदी है | प्यारे दे बिछड़ने दे ग़मे ते हरी करी फुलमो अपनी जान देई दिन्दी है |
अगले दिन रांझू बारात लेइ करी दुए ग्राएं कि चलदा है | जालू से पलकिया दा पर्दा टाई करी पहाड़े दे दुए पासे दिखदा है तालु तिसकी कुसी दी लोथ लेइ के जांदे लोक दसदे न | से अपने कहारां जो पुछदा है, अपने बारातियां जो पुछदा है कि लोक कूदि लोथ लेइ करी चल्यो तालू तिसजो पता चलदा है कि तिसदे वियोगे च फुलमो अपनी जान देइ ती | से कहारां कि पालकी रखणे जो बोल्दा है | अपने रिश्तेदारां कि से फुलमो कि लकड़ी पाने बाद बारात लेइ के जाने जो गलांदा है | रांझू नठी करी दरयाए पारे शमशान पर पूजी जांदा है | अपने खब्बे हत्थे ने से लोथा पर पर लकड़ी राख्दा है कन्ने सजे हत्थे च लाम्बू पकड़ी के से फुलमू दी चिता चीणदा है | फुलमो दी चिता कि अग लायी के से चिता टके ही खड़ोतया रेंदा है | जालू चिता दी आग पूरी परचण्ड होइ जांदी है तालू रांझू चिता च छाल मारी दिंदा है |
उआरें-उआरें रांझूऐ दी जंज जाए
ओ लोको जानी जाए
पारें-पारें फुलमो दी लोथ लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
रक्खा वो कहारो मेरी पलकिया
ओ मेरी पलकिया
फुलमो जो लकड़ी मैं पाणी लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
बाएं हाथी रनझुए ने लकड़ी पाई
लोको लकड़ी पाई
दाएं हाथी फुलमो जो लाया लम्बुआ
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
प्रीत नी लाणी लोको कच्च्यां कन्ने
हो लोको कुँवारेयां कन्ने
व्याह करी हूंदे बेईमान लोको
गलां होइयां बीतियाँ
गलां होइयां बीतियाँ
रांझू-फुलमो जो जिन्दे जी तां समाजे इक नई होणा दित्ता पर आज भी पता नई कितने प्यार करणे आले इस समाजे दी पेदपाबे दिया अगा च जाली के मरी-मुकी गए | रांझू-फुलमो दी मिसाल तां हर पहाड़िए दी वफादारिया दी मिसाल है.....................