यह लोकगीत शिव-पार्वती जी के विवाह के समय घटी उस घटना पर आधारित है कि जब भोलेनाथ बारात के साथ पार्वती जी को व्याहने राजा कैलाश के महल में आते हैं तो पार्वती जी कि माँ भोलेनाथ के रूप को देख कर डर जाती हैं और अपनी बेटी उनके साथ व्याहने को मना कर देती है | इसे अपना अपमान समझ कर जब भोलेनाथ वापिस कैलाश पर्वत कि ओर जाने लगते हैं तो पार्वती जी उनके पीछे चलने लगती हैं और उन दोनों के मध्य कुछ इस प्रकार का संवाद होता है :
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
(पार्वती जी : हे भोलेनाथ अब कहाँ जा रहे हो
मेरे पिताजी ने मेरा विवाह आपके साथ तय कर दिया है )
रिड़िया तां रिड़िया धुड़ू भला नसदा
नाले तां खोले गौरा तोपदी
(भोलेनाथ ऊपर पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं
नीचे नदी-नालों और गहरी खाईयों में पार्वती माँ (गौरा) उनको ढूंढ रहीं हैं )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
कच्ची ओ कुवारी बाबुल दे घरें
अज बो ब्याहियाँ कजो भला छोड़दा
(पार्वती जी भोलेनाथ जी को कह रहीं हैं कि मैं अपने मायके में कुंवारी थी
अब तुम मुझसे विवाह का वादा करके भला क्यों छोड़ रहे हो )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
गौरा तां गौरा हकां बो लाईआं
गौरा दी हक़ न ओ सुणदी
(पार्वती जी ने भोलेनाथ को कई बार आवाज़ लगाई
लेकिन उनकी एक भी पुकार भोलेनाथ तक नहीं पहुंची)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
मंदरिया चाली चल मेरे धुड़ूआ
नाजुक़ पैरां छाले हो आये
(हे भोलेनाथ थोड़ा धीरे चलो
मेरे नाज़ुक पैरों में छाले पड़ गए हैं)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
छन्द-छन्द धुड़ुआ बाली हो लेंआं
नाज़ुक़ लतां न ओ चलदीं
(हे भोलेनाथ थोड़ी देर बैठ जाओ
मेरी नाज़ुक़ टाँगें अब नहीं चल रहीं हैं)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हो रिड़िया तां रिड़िया कजो भला हण्डदी
बिच शमशानां डेरा हो मेरा
(हे पार्वती तुम मुझे पहाड़ों में क्यों ढूँढ रही हो
शमशान के बीचों-बीच मेरा डेरा हैं )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
ओ उच्याँ कैलाशां डेरा हो मेरा
तू लड़ मेरा छड़ी हो दियां
(हे पार्वती मैं ऊँचे कैलाशों में रहता हूँ
तुमसे यहाँ नहीं रहा जाएगा तुम मुझे छोड़ दो तो बेहतर है)
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
मड़िया रा कूड़ा मड़िया सुटणा
नाते दी धीया नाते जो देणी
(हम शमशान में रहने वाले शमशान में ही रहेंगे
तुम्हें मैं तुम्हारे पिताजी को वापिस सौंप दूंगा)
हूँण वो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे बो लाई
हो असां भला हूँदे मड़ियाँ दे जोगी
तू भला हूँदी राजे दी बेटी
(हम शमशान में रहने वाले जोगी हैं
और तुम ठहरी राजा कि बेटी
अपनी नहीं निभेगी )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
गल मेरे गौरा सर्पां दी माला
भूतां दे संग डेरा हो मेरा
(हे पार्वती मेरे गले में सांपों कि माला है
और भूत-प्रेतों के साथ मेरा उठना बैठना है )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हो उच्याँ कैलाशां शिव मेरा बसदा
कुण बो गलांनदा गौरा न बसदी
(ऊँचे कैलाशों मेरा मेरे भोलेनाथ निवास करते हैं
और कौन कहता है वहां पार्वती माँ का निवास नहीं है )
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
हूँण बो कताईं जो नसदा धुड़ुआ
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई
बापुएं लड़ तेरे ओ लाई...................
अगर आपको इस लोकगीत में कोई भी गलती नज़र आये तो उजागर जरूर करें | लोकगीत समय और जगह के हिसाब से ढल जाते हैं और एक ही शब्द के कई मायने निकल आते हैं | खैर अब यह हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम अपनी इस धरोहर को इसके सही अर्थ के साथ संजो कर रखें और आप सभी इसमें अपना योगदान दें..............
अगर आपको इस लोकगीत में कोई भी गलती नज़र आये तो उजागर जरूर करें | लोकगीत समय और जगह के हिसाब से ढल जाते हैं और एक ही शब्द के कई मायने निकल आते हैं | खैर अब यह हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम अपनी इस धरोहर को इसके सही अर्थ के साथ संजो कर रखें और आप सभी इसमें अपना योगदान दें..............
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